Tuesday, October 24, 2006

मधु का प्याला












जयदेव वशिष्ठ
३१ जुलाई १९२५ ई० को खिरकिया, हरदा म०प्र० में जन्में जयदेव वशिष्ठ ८२ वर्ष की अवस्था में भी कविता, कहानी, नाटक लेखन में सक्रिय हैं।अब तक आपकी प्रतीक्षा, नर्मदाशतक, दर्पण, मधु का प्याला और मुक्तिदाता पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। श्री वशिष्ठ जी नगर की साहित्यिक गतिविधियों में पूरी तल्लीनता के साथ सहभागिता करते हैं और प्रतिदिन कई किलोमीटर पैदल चलने में युवाओं को भी शर्मिन्दा कर देते हैं। आपकी रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं हैं तथा आकाशवाणी से भी प्सारित हुई हैं।
सम्पर्क सूत्र -
शांतिनगर, आई० टी० आईऔ रोड
होशंगाबाद म०प्र०
दूरभाष- 07574- 257558


मधु का प्याला


खिचीं हाथ में वे रेखायें
कर से पकड़ लिया प्याला
किस्मत में लिखवाकर लाया
कहलाया पीनेवाला
दुनियावालो ! नियति यही थी
बतलाओ ! मैं क्या करता
बदा भाग्य में अदा कर रहा
पीकर के ! मधुका प्याला।।


आज एक, दो जाम दिये कल
परसों प्याले पर प्याला
किन्तु, न प्यास बुझा पायेगा
सागर भर, पीकर-हाला
यह, प्यास ही ऐसी है, मित्रों
प्यासा रहता पीनेवाला
ऐसे प्यासों को सादर, मैं
देता हूँ ! मधु का प्याला




करी आरती, हुई प्रार्थना
मंदिर पर पड़ता ताला
मसज़िद ऊपर बाँग लगाकर
चला गया मसज़िद वाला
किन्तु, यहाँ हाला पीने पर
दुनिया वालो! क्या गुजरी
पीकर के बेहोश पड़ा पर
था पकड़े! मधु का प्याला।।


मेरे हितू न पूछो मुझसे
मुश्किल में मम जान फँसी
एक तरफ है, मेरी दुनिया
एक तरफ मेरी-हाला
किसको मैं स्वीकार करूँ या
किसको मैं इन्कार करूँ
मुश्किल मेरी दुनिया छोडूँ
या छोडू! मधु का प्याला।।


मेरे हितू न मुझसे पूछो
कितनी पीली है हाला
प्याले पर प्याले ढ़ाले हैं
अन्तर में उभरा छाला
अब, छोडूँ तो जान तडफती
पीता हूँ तो, मौत खड़ी
असमंजस में मुझे डालता
बार-बार मधु का प्याला।


शुक्रवार को मिला नवाजी
सज़दा करते मसज़िद में
रविवार को गिरजाघर में
याद किया जाने वाला
खोले वंद-कपाट समय से
पंडित जी मंदिर-वाला
दुनियावालों ! जब जी चाहे
भर पी लो ! मधु का प्याला।।


किसी समय जिसके आँगन में
प्याला स्र्न झुन बजती थी
कभी उसी आँगन के भीतर
संन्यासी जपता माला
किसी समय जिसके आँगन में
लक्ष्मी पूजन होता था।
कभी उसी आँगन के भीतर
ढ़ला करा! मधु का प्याला।।


किसी समय जिनको लगते थे
कारा गृह देवालय से
बड़ी हथकड़ियाँ के आभूषण
तन पर धारण करते थे
फाँसी का फंदा गरदन का
थी, जिनकी तुलसी-माला
इन्कलाब का मंच लवों पर
देश भक्ति ! मधु का प्याला।।


मेरा मन जब विचलित होता
कहता आ, ``साक़ीवाला''
राग, द्वेष-प्रतिशोध, वैर पर
पी-लेना मेरी हाला
मेरे भीतर द्वन्द मचा हो
क्लेश नहीं-हिक पाता है
मुझ पर मादकता हाला की
छा जाता! मधु का प्याला।।



मेरे प्याले से झलकेगी
जहाँ-जहाँ भादक हाला
वहाँ-वहाँ हर दिन उभरेगा
एक नया पीने वाला
मीनारें चढ़-मुल्ला-बोले
पंडित-फेरेगा-माला
जिओ और जीने दो सबको
पीने दो! मधु का प्याला।।


शिकन न उभरी चहरे ऊपर
मस्ती में पीने वाला
हाय-हाय कर मैंने अब तक
कितना जीवन जी डाला
उसे मिली पीने को हाला
मानों सब कुछ पा जाता
बची न कोई और कामना
पीकर के! मधु का प्याला।।


अलग-अलग रंगों में लेकिन
माटी निर्मित-हर प्याला
थल से नभ की ऊँचाई से
भी ऊँची साक़ीवाला
दुनिया भर के सागर जितने
इतनी भर- लाया हाला
मानव जीवन के दर्शन से
भरा गया! मधु का प्याला।।



विश्वात्मा! मेरा अगज़
प्याले में सागर भरता
कितना बड़ा रहा हाला गृह
कितना बड़ा रहा प्याला
चुस्की एक लगाकर किसमें
सारा सागर पी डाला
पिया गया था जिससे सागर
छोड़ गया ! मधु का प्याला।।


मेरे वन्धु यहाँ जीते है
पी पी कर अपनी हाला
अपनी-अपनी है इच्छायें
अपना-अपना है प्याला
दिन में दूनी! रात चौगुनी
बढ़ती जाती अभिलाषी
भटक रहे मस्र्थल में भगसे
मृग-तृष्णा! मधु का प्याला।।


इक दौर नहीं ! दो दौर नहीं
हर दौर यही होने वाला
हर वार मुझे चूमा करता
हर छाला का पीने वाला
सहलाया जाता तन मेरा
काली माटी का प्याला
था मतलब, पीने भर से फिर
दूर किया! मधु का प्याला।।


सभी-बराबर हिस्सा पाते
हाला गृह-आने वाले
नहीं किसी को कम या ज्यादा
वित रित की जाती हाला
इस पर भी है नहीं अपेक्षा
बदले में पा जाने की
फर्ज-समझ कर पी साक़ी से
झुक कर लो! मधु का प्याला।।

-पं० जयदेव वशिष्ठ
-०००-

No comments: